’देऊळ’ के गौरवशाली यश के बाद निर्माता अभिजित
घोलप की फ़िल्म ’भारतीय’ फिर से एक नया संदेश लेकर आयी है. अजय-अतुल ने करीब तीन
साल बाद किसी मराठी फ़िल्म को संगीतबद्ध किया है. ’भारतीय म्हंजी काय रं भाऊ’ इस
सवाल का जवाब ढुंढने का प्रयास करनेवाली यह फ़िल्म ११ अगस्त तो महाराष्ट्र के
सिनेमाघरों में रीलीज़ हुई.
फ़िल्म की कहानी महाराष्ट्र-कर्नाटक के सीमा पर
बसे ’आडनीड’ गांव से शुरू होती है. महाराष्ट्र-कर्नाटक सीमा प्रश्न के बारे में
सभी भारतीय जानते ही है. संयुक्त महाराष्ट्र के आंदोलन के बाद भी कई मराठीभाषी
गांव महाराष्ट्र में शामील नहीं हुए थे. इसी धागे को लेकर कहानी आगे बढती है.
’आडनीड’ एक बहुत ही पिछड़ा हुआ गांव है. जहां के लोगों को सिर्फ़ अपने रोज़ की
रोज़ीरोटी कमाने की ही फ़िक्र रहती है. बाकी मामलों में वे कुछ दखलअंदाज़ी नहीं करते.
गांव की राजनीती संभालनेवाले लाडे पाटिल (कुलदीप पवार) और सरदेशमुख (मोहन आगाशे)
आपस के दुश्मन है. एक दिन गांव में एक लड़का (सुबोध भावे) अपने पूर्वजों के मूल
ढुंढते हुए पहुंचता है. लेकिन एक दिन उसे पता चलता है की, यह गांव न ही महाराष्ट्र
में आता अहि और न ही कर्नाटक में! ऐसे पिछड़े गांव से हमे कुछ भी नहीं मिल सकता यह
देखकर दोनों राज्यों के राजनेता इसे अपना नहीं मानते. फिर नायक का संघर्ष शुरू
होता है. अगर यह गांव दोनों राज्यो में नहीं है, तो कहा है? फिर एक दिन नायक को सरदेशमुख
की हवेली से ऐसे कागज़ाद मिलते है, जिसे पता चलता है की यह गांव एक स्वतंत्र
संस्थान घोषित किया गया था मगर इस बात का ज़िक्र अब तक नहीं हुआ. इसी हवेली में
बहुत सारा गुप्तधन भी नायक को हासिल होता है. इस के बाद महाराष्ट्र और कर्नाटक इस
गांव को अपना मानने में संघर्ष शुरू करते है. लेकिन नायक के मन में कुछ और ही विचार
है. अपने गांव को वो एक राष्ट्र घोषित करता है जिसे स्वतंत्र भारत में विलीन ही
नहीं किया गया था. इस के बाद का संघर्ष परदे पर देखना ही उचित होगा. इस गांव को
’भारतीय’ साबित करने की कोशिश ’भारतीय’ में दिखाई गयी है.
फ़िल्म मे मुख्य सूत्रधार है, मकरंद अनासपुरे.
उन्हें पहली बार कुछ अलग भूमिका मे देखा जा सकता है. मुख्य नायक सुबोध भावे को
रास्ता दिखाने का काम वे कई बार करते है. मीता सावरकर बहुत की कम फ़िल्मों में
मुख्य नायिका के रूप में देखी गई है. ’पांगिरा’ के बाद शायद यह उसकी दूसरी फ़िल्म
होगी. जितेंद्र जोशी का रोल एक ’कन्फ्युज़्ड केरेक्टर’ का है. ’भारतीय म्हंजी काय
रं भाऊ’ यह सवाल भी उन के ही मन में पहली बार आता है. वह गांव के लाडे पाटिल के
पुत्र के रूप मे नज़र आता है.
नटरंग के बाद अजय-अतुल ने ’भारतीय’ मराठी को
संगीत दिया. वह श्रवणीय है. श्रेया घोषाल, रूपकुमार राठोड तथा कुणाल गांजावाला
जैसे गायको ने ’भारतीय’ के गीतों को गाया है. श्रेया का ’अय्यय्यो’ गीत ने कई
दिनों से धूम मचाई हुई है. रूपकुमार राठोड का कृष्ण भजन तथा कुणाल गांजावाला का
’आम्ही लई सॉलिड आहोत’ एक बार ज़रूर सुनिये. अनिरूद्ध पोतदार की यह कहानी कई बार सच
घटना पर आधारित है, ऐसा ही लगता है. शायद हो भी सकती है.
२०१२ के टॉप पांच फ़िल्मों में अभी ही इस फ़िल्म
ने अपना नाम दर्ज किया है.
मेरी रेटिंग: ३.५ स्टार.